"Peace of mind"
आज फिर हम शांति की खोज में निकले, चूँकि कई दिनों से थक गया था रूम पर पड़े पड़े। सो सोचा "क्यों न आज कहीं चलें"। तो निकल पड़ा।
आपको यह हैरानी होगी यह बात जानकर कि आखिर किस "शांति" की खोज में हम निकले थे। आपको बता दूँ की शांति भी दो तरीके की होती है या यूँ कहें की तीन। एक तो मन की शांति, जो हम कभी खोजने नही निकलते,लुप्त सा हो गया है आज के आधुनिक जीवन में। हम तो भैया दूसरी शांति में खोज में निकलते हैं,जो की आँख की शांति होती है,जो की internet के कुछ चुनिंदे website पर मिल जाते हैं(अक्सर जिसकी हम किसी से चर्चा नही करते),हालाँकि इसे तन की शांति भी कह सकते हैं,अर्थात् तीसरी।
यह शांति किसी जंगल,शहर से कहीं दूर एकांत में नही मिलती,ये तो कहीं और मिलती है।इसके लिए तो हम लोगों को तो पहले काफी तैयारी करनी पड़ती है, गमकाऊआ साबुन से नहाना होता है,अच्छे facewash से रगड़ रगड़ के मुंह धुलना होता है, भड़कीले कपडे पहनने होते हैं, इत्र( फॉग) छिड़कना होता है,और भी कई चीज होते है जो की आपको भी पता है क्योंकि आप भी करते हैं,तब जाकर कहीं तैयार हो पाते है शांति की खोज में निकलने के लिए। ये सारे अनकही , अनसुनी ,किसीके द्वारा न सिखाई गयी कुछ terms & conditions है| हर बार इतने सारे process से गुजरने के बाद ही, हम तथाकथित "शांति" की खोज में निकलते है। यह अक्सर public place जैसे गर्ल्स कॉलेज के पास,बड़े बड़े मॉल में जहाँ अक्सर हम खरीदने कभी नही जाते यही एक मात्र लक्ष्य की पूर्ति के लिए जाते हैं, मंदिर में, गिर्क्स हॉस्टल के पास,station, train में मिलती है।
हालाँकि आपको बुरा लगा होगा यह पढ़ कर मगर यह हमारे समाज की ,हमारे सोच की एक कड़वा सच्चाई है।जिसे हमें सुनना होगा,जानना होगा ताकि बदलाव ला सकें। भले आप कभी न निकलें हों,पर गुरु जरा आसपास नजर दौड़ाइए,गोलगप्पे वाले के पास,सड़क पर चलते हुए,ट्रेन या बस सर सफ़र करते हुए, तारने वाले जरूर मिल जायेगा।अंत में यही कहना चाहूँगा खुद की आँखे खोलिये, और दूसरों की भी। हो सकता है आपकी एक पहल, किसी का भला कर दे।
आज फिर हम शांति की खोज में निकले, चूँकि कई दिनों से थक गया था रूम पर पड़े पड़े। सो सोचा "क्यों न आज कहीं चलें"। तो निकल पड़ा।
आपको यह हैरानी होगी यह बात जानकर कि आखिर किस "शांति" की खोज में हम निकले थे। आपको बता दूँ की शांति भी दो तरीके की होती है या यूँ कहें की तीन। एक तो मन की शांति, जो हम कभी खोजने नही निकलते,लुप्त सा हो गया है आज के आधुनिक जीवन में। हम तो भैया दूसरी शांति में खोज में निकलते हैं,जो की आँख की शांति होती है,जो की internet के कुछ चुनिंदे website पर मिल जाते हैं(अक्सर जिसकी हम किसी से चर्चा नही करते),हालाँकि इसे तन की शांति भी कह सकते हैं,अर्थात् तीसरी।
यह शांति किसी जंगल,शहर से कहीं दूर एकांत में नही मिलती,ये तो कहीं और मिलती है।इसके लिए तो हम लोगों को तो पहले काफी तैयारी करनी पड़ती है, गमकाऊआ साबुन से नहाना होता है,अच्छे facewash से रगड़ रगड़ के मुंह धुलना होता है, भड़कीले कपडे पहनने होते हैं, इत्र( फॉग) छिड़कना होता है,और भी कई चीज होते है जो की आपको भी पता है क्योंकि आप भी करते हैं,तब जाकर कहीं तैयार हो पाते है शांति की खोज में निकलने के लिए। ये सारे अनकही , अनसुनी ,किसीके द्वारा न सिखाई गयी कुछ terms & conditions है| हर बार इतने सारे process से गुजरने के बाद ही, हम तथाकथित "शांति" की खोज में निकलते है। यह अक्सर public place जैसे गर्ल्स कॉलेज के पास,बड़े बड़े मॉल में जहाँ अक्सर हम खरीदने कभी नही जाते यही एक मात्र लक्ष्य की पूर्ति के लिए जाते हैं, मंदिर में, गिर्क्स हॉस्टल के पास,station, train में मिलती है।
हालाँकि आपको बुरा लगा होगा यह पढ़ कर मगर यह हमारे समाज की ,हमारे सोच की एक कड़वा सच्चाई है।जिसे हमें सुनना होगा,जानना होगा ताकि बदलाव ला सकें। भले आप कभी न निकलें हों,पर गुरु जरा आसपास नजर दौड़ाइए,गोलगप्पे वाले के पास,सड़क पर चलते हुए,ट्रेन या बस सर सफ़र करते हुए, तारने वाले जरूर मिल जायेगा।अंत में यही कहना चाहूँगा खुद की आँखे खोलिये, और दूसरों की भी। हो सकता है आपकी एक पहल, किसी का भला कर दे।
Apko kaisa lga jaroor btayen
ReplyDeleteKya improvement hona chahiye ye v btaye